तस्वीर में रंग भर रहे हैं
मिलने का इरादा कर रहे हैं
ख़ुशियाँ ही नहीं थीं साथ मेरे
ग़म भी मेरे हम-सफ़र रहे हैं
आँखें तो खुली हुई थीं फिर भी
हर बात से बे-ख़बर रहे हैं
कोई राहत मिली न अहल-ए-फ़न को
आराम से बे-हुनर रहे हैं
बाक़ी नहीं दिल में शौक़-ए-परवाज़
मुद्दत से बे-बाल-ओ-पर रहे हैं
उर्दू सी ज़बाँ पे कुछ मुख़ालिफ़
हर सम्त से वार कर रहे हैं
इक उम्र से अहल-ए-दिल के डेरे
तलवार की धार पर रहे हैं
मुश्ताक़ तो जा चुके हैं 'कौसर'
अब किस लिए बन-सँवर रहे हैं

ग़ज़ल
तस्वीर में रंग भर रहे हैं
महेर चंद काैसर