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तस्वीर में रंग भर रहे हैं | शाही शायरी
taswir mein rang bhar rahe hain

ग़ज़ल

तस्वीर में रंग भर रहे हैं

महेर चंद काैसर

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तस्वीर में रंग भर रहे हैं
मिलने का इरादा कर रहे हैं

ख़ुशियाँ ही नहीं थीं साथ मेरे
ग़म भी मेरे हम-सफ़र रहे हैं

आँखें तो खुली हुई थीं फिर भी
हर बात से बे-ख़बर रहे हैं

कोई राहत मिली न अहल-ए-फ़न को
आराम से बे-हुनर रहे हैं

बाक़ी नहीं दिल में शौक़-ए-परवाज़
मुद्दत से बे-बाल-ओ-पर रहे हैं

उर्दू सी ज़बाँ पे कुछ मुख़ालिफ़
हर सम्त से वार कर रहे हैं

इक उम्र से अहल-ए-दिल के डेरे
तलवार की धार पर रहे हैं

मुश्ताक़ तो जा चुके हैं 'कौसर'
अब किस लिए बन-सँवर रहे हैं