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तस्वीर-ए-इज़्तिराब सरापा बना हुआ | शाही शायरी
taswir-e-iztirab sarapa bana hua

ग़ज़ल

तस्वीर-ए-इज़्तिराब सरापा बना हुआ

शफ़क़त काज़मी

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तस्वीर-ए-इज़्तिराब सरापा बना हुआ
फिरता हूँ शहर शहर उन्हें ढूँढता हुआ

इक दर्द और वो भी किसी का दिया हुआ
इतना बढ़ा कि आप ही अपनी दवा हुआ

मिल कर बिछड़ गया था कोई जिस मक़ाम पर
अब तक उसी मक़ाम पे हूँ चुप खड़ा हुआ

जैसे उसे ख़बर थी मिरे हाल-ए-ज़ार की
गुज़रा वो इस अदा से मुझे देखता हुआ

जिन हादसात-ए-दहर से बच कर चला था मैं
हर गाम पर उन्हीं का मुझे सामना हुआ

यूँ बे-दिली के साथ सुना हम ने 'काज़मी'
जैसे था कुछ फ़साना-ए-हस्ती सुना हुआ