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तस्वीर बनाता हूँ तिरी ख़ून-ए-जिगर से | शाही शायरी
taswir banata hun teri KHun-e-jigar se

ग़ज़ल

तस्वीर बनाता हूँ तिरी ख़ून-ए-जिगर से

शकील बदायुनी

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तस्वीर बनाता हूँ तिरी ख़ून-ए-जिगर से
देखा है तुझे मैं ने मोहब्बत की नज़र से

जितने भी मिले रंग वो सब भर दिए तुझ में
इक रंग-ए-वफ़ा और है लाऊँ वो किधर से

सावन तिरी ज़ुल्फ़ों से घटा माँग के लाया
बिजली ने चुराई है तड़प तेरी नज़र से

मैं दिल में बुला कर तुझे रुख़्सत न करूँगा
मुश्किल है तिरा लौट के जाना मिरे घर से