तस्वीर बनाता हूँ तिरी ख़ून-ए-जिगर से
देखा है तुझे मैं ने मोहब्बत की नज़र से
जितने भी मिले रंग वो सब भर दिए तुझ में
इक रंग-ए-वफ़ा और है लाऊँ वो किधर से
सावन तिरी ज़ुल्फ़ों से घटा माँग के लाया
बिजली ने चुराई है तड़प तेरी नज़र से
मैं दिल में बुला कर तुझे रुख़्सत न करूँगा
मुश्किल है तिरा लौट के जाना मिरे घर से
ग़ज़ल
तस्वीर बनाता हूँ तिरी ख़ून-ए-जिगर से
शकील बदायुनी