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तस्कीन दे सकेंगे न जाम-ओ-सुबू मुझे | शाही शायरी
taskin de sakenge na jam-o-subu mujhe

ग़ज़ल

तस्कीन दे सकेंगे न जाम-ओ-सुबू मुझे

महेश चंद्र नक़्श

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तस्कीन दे सकेंगे न जाम-ओ-सुबू मुझे
बेचैन कर रही है तिरी आरज़ू मुझे

मुझ से तलाश-ए-राह की दुश्वारियाँ न पूछ
भटका रहा है ज़ौक़-ए-सफ़र चार-सू मुझे

बज़्म-ए-असर-फ़रेब की तब्दीलियाँ तो देख
मग़्मूम आ रहे हैं नज़र ख़ूब-रू मुझे

तेरी नज़र न जान सकी मेरे दिल का हाल
क्या मुतमइन करेगी तिरी गुफ़्तुगू मुझे

ऐ 'नक़्श' इज़्तिराब-ए-दिल-ओ-जाँ को क्या करूँ
बर्बाद कर रहा है ग़म-ए-आरज़ू मुझे