तस्कीन दे सकेंगे न जाम-ओ-सुबू मुझे
बेचैन कर रही है तिरी आरज़ू मुझे
मुझ से तलाश-ए-राह की दुश्वारियाँ न पूछ
भटका रहा है ज़ौक़-ए-सफ़र चार-सू मुझे
बज़्म-ए-असर-फ़रेब की तब्दीलियाँ तो देख
मग़्मूम आ रहे हैं नज़र ख़ूब-रू मुझे
तेरी नज़र न जान सकी मेरे दिल का हाल
क्या मुतमइन करेगी तिरी गुफ़्तुगू मुझे
ऐ 'नक़्श' इज़्तिराब-ए-दिल-ओ-जाँ को क्या करूँ
बर्बाद कर रहा है ग़म-ए-आरज़ू मुझे
ग़ज़ल
तस्कीन दे सकेंगे न जाम-ओ-सुबू मुझे
महेश चंद्र नक़्श