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तसव्वुर प्यार का जो है पुराना करने वाला हूँ | शाही शायरी
tasawwur pyar ka jo hai purana karne wala hun

ग़ज़ल

तसव्वुर प्यार का जो है पुराना करने वाला हूँ

आयुष चराग़

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तसव्वुर प्यार का जो है पुराना करने वाला हूँ
मैं अपनी आप-बीती को फ़साना करने वाला हूँ

जहाँ पे सिर्फ़ वो थी और मैं था और ख़ुश्बू थी
उसी झुरमट को अपना आशियाना करने वाला हूँ

जिसे मैं चाहता हूँ वो कहीं की शाहज़ादी है
सो उस के वास्ते ख़ुद को शहाना करने वाला हूँ

उदासी देख आई है मकाँ शहर-ए-मोहब्बत में
जहाँ मैं शाम को जा कर बयाना करने वाला हूँ

मुझे मा'लूम है वो क्या शिकायत करने वाली है
उसे मा'लूम है मैं क्या बहाना करने वाला हूँ

तिरी आँखों तिरी ज़ुल्फ़ों तिरे होंठों से वाबस्ता
कई अरमान हैं जिन को सियाना करने वाला हूँ

उसे जो अक़्ल-मंदी की बड़ी बातें बताते हैं
उन्हीं लोगों को अब अपना दिवाना करने वाला हूँ

'चराग़' अब कौन सी मजबूरियाँ हैं जो अँधेरा है
तुम्हीं कहते थे कि रौशन ज़माना करने वाला हूँ