EN اردو
तसलसुल पाएमाली का मिलेगा | शाही शायरी
tasalsul paemali ka milega

ग़ज़ल

तसलसुल पाएमाली का मिलेगा

सय्यद अमीन अशरफ़

;

तसलसुल पाएमाली का मिलेगा
सरीर-आरा ख़िज़ाँ है क्या मिलेगा

चलो दुश्मन को सीने से लगा लें
कहाँ इस शहर में अपना मिलेगा

ख़राबा है कि दश्त-ए-नैनवा है
कोई ज़ख़्मी कोई प्यासा मिलेगा

मिरे लश्कर की मिट्टी दूसरी है
सफ़-ए-आदा में वो भी जा मिलेगा

नहीं बे-वज्ह इस गिर्दाब में हूँ
कनार-ए-आब भी दरिया मिलेगा

नहीं बे-सूद नाज़-ए-ग़म उठाना
हिसाब-ए-दर्द है दूना मिलेगा

'अमीन'-अशरफ़ की है पहचान ये भी
भरी महफ़िल में वो तन्हा मिलेगा