तरवार खींच हम को दिखाते हो जब न तब
क्या मर रहे जवाँ को सताते हो जब न तब
तक़्सीर हम से कौन सी ऐसी हुई वक़ूअ'
मुँह पर जो हाथ मेरे धिराते हो जब न तब
अज़-बस मिज़ाज हम से तुम्हारा कशीदा है
आज़ुर्दा बात में हुए जाते हो जब न तब
अब तो रखा है काट हमारा ये आप ने
ग़ैरों से मिल पतंग उड़ाते हो जब न तब
इक बात का हमारी बतंगड़ बनाते हो
सौ झूट सच को अपने छुपाते हो जब न तब
ऐ वाइ'ज़ो ये क्या तुम्हें बकवास लग गई
मेरी सुनो तुम अपनी ही गाते हो जब न तब
हम दर्द-ए-दिल कहें तो जवाब इस मज़े से दो
क़िस्सा 'मुहिब' ये किस को सुनाते हो जब न तब
ग़ज़ल
तरवार खींच हम को दिखाते हो जब न तब
वलीउल्लाह मुहिब