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तर्क कर अपने नंग-ओ-नाम को हम | शाही शायरी
tark kar apne nang-o-nam ko hum

ग़ज़ल

तर्क कर अपने नंग-ओ-नाम को हम

इंशा अल्लाह ख़ान

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तर्क कर अपने नंग-ओ-नाम को हम
जाते हैं वाँ फ़क़त सलाम को हम

ख़ुम के ख़ुम तो लुढ़ाई यूँ साक़ी
और यूँ तरसें एक जाम को हम

मैं कहा मैं ग़ुलाम हूँ बोला
जानें हैं ख़ूब इस ग़ुलाम को हम

दैर ओ काबा के बीच हैं हँसते
ख़ल्क़ के देख इज़्दिहाम को हम

मुतकल्लिम हैं ख़ास लोगों से
करते हैं कब ख़िताब आम से हम

रूठने में भी लुत्फ़ है 'इंशा'
सुब्ह गर रूठे वो तो शाम को हम