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तर्जुमानी-ए-ग़म-ए-ज़ीस्त का मौसम भी नहीं | शाही शायरी
tarjumani-e-gham-e-zist ka mausam bhi nahin

ग़ज़ल

तर्जुमानी-ए-ग़म-ए-ज़ीस्त का मौसम भी नहीं

साजिदा ज़ैदी

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तर्जुमानी-ए-ग़म-ए-ज़ीस्त का मौसम भी नहीं
शो'ला-ए-ग़म भी नहीं मौज-ए-तबस्सुम भी नहीं

कोई उनवाँ कोई सूरत नहीं वज्ह-ए-तस्कीन
वहशत-ए-दिल की दवा जान-ए-जहाँ तुम भी नहीं

पा-ब-ज़ंजीर हुई जाती है पर्वाज़-ए-ख़याल
दिल की आवाज़ में जज़्बों का तरन्नुम भी नहीं

फिर ये क्या शय है जो रखती है हिरासाँ शब-ओ-रोज़
बहर-ए-एहसास की मौजों में तलातुम भी नहीं