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तरस रहा हूँ अदम आर्मीदा ख़ुशबू को | शाही शायरी
taras raha hun adam aarmida KHushbu ko

ग़ज़ल

तरस रहा हूँ अदम आर्मीदा ख़ुशबू को

कृष्ण मोहन

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तरस रहा हूँ अदम आर्मीदा ख़ुशबू को
कहाँ से ढूँड के लाऊँ रमीदा आहू को

ज़हे-नसीब कि तस्कीन दे रहा है आज
तुम्हारा हुस्न मिरे इश्क़-ए-सर-ब-ज़ानू को

चमक रहा है तिरी राह में तिरी ख़ातिर
है इंतिज़ार तिरा हर दिए को जुगनू को

सितम कि अहल-ए-मोहब्बत भी रह गए नाकाम
समझ न पाए जमाल-ए-हज़ार-पहलू को

उतारा उम्र-ए-गुरेज़ाँ के रस्ते जोगी ने
हमारे सर से कई जोगिनों के जादू को

हज़ार हीले बहाने से 'कृष्ण-मोहन' ने
शिकार-ए-शौक़ किया है निगार-ए-दिल-जू को