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तक़दीर की गर्दिश क्या कम थी इस पर ये क़यामत कर बैठे | शाही शायरी
taqdir ki gardish kya kam thi is par ye qayamat kar baiThe

ग़ज़ल

तक़दीर की गर्दिश क्या कम थी इस पर ये क़यामत कर बैठे

शकील बदायुनी

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तक़दीर की गर्दिश क्या कम थी इस पर ये क़यामत कर बैठे
बे-ताबी-ए-दिल जब हद से बढ़ी घबरा के मोहब्बत कर बैठे

आँखों में छलकते हैं आँसू दिल चुपके चुपके रोता है
वो बात हमारे बस की न थी जिस बात की हिम्मत कर बैठे

ग़म हम ने ख़ुशी से मोल लिया उस पर भी हुई ये नादानी
जब दिल की उमीदें टूट गईं क़िस्मत से शिकायत कर बैठे