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तक़दीर के आगे कभी तदबीर किसी की | शाही शायरी
taqdir ke aage kabhi tadbir kisi ki

ग़ज़ल

तक़दीर के आगे कभी तदबीर किसी की

तालिब बाग़पती

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तक़दीर के आगे कभी तदबीर किसी की
चलती हो तो समझे कोई तक़्सीर किसी की

अब एक तमन्ना हो तो पूरी कोई कर दे
यूँ कौन बदल सकता है तक़दीर किसी की

दिल में उतर आई है निगाहों से सिमट कर
किस दर्जा हया-कोश है तस्वीर किसी की

वो आएँ न आएँ मुझे नींद आ नहीं सकती
सुनता ही नहीं नाला-ए-शब-गीर किसी की

बरसात का इक ख़्वाब है मुस्तक़बिल-ए-तारीक
बिखरी हुई सी ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर किसी की

अल्लाह ये तारीक फ़ज़ाएँ ये घटाएँ
ये बर्क़-ए-ख़यालात में तस्वीर किसी की

आँखें मिरी आँखें हैं ज़हे जोशिश-ए-गिर्या
धुल धुल के निखर आई है तस्वीर किसी की

'तालिब' तिरे जज़्बात की तशरीह तो कर दूँ
डर है कभी हो जाए न तश्हीर किसी की