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तक़दीर हो ख़राब तो तदबीर क्या करे | शाही शायरी
taqdir ho KHarab to tadbir kya kare

ग़ज़ल

तक़दीर हो ख़राब तो तदबीर क्या करे

अरुण कुमार आर्य

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तक़दीर हो ख़राब तो तदबीर क्या करे
हाथों में दम अगर नहीं शमशीर क्या करे

मुझ को अंधेरों में ही भटकना है उम्र-भर
जब आँख ही नहीं है तो तनवीर क्या करे

आज़ाद हो गया है वो दुनिया की क़ैद से
उस का बुलावा आया तो ज़ंजीर क्या करे

दौलत है मेरे हाथ में दिल को सुकूँ नहीं
चैन और क़रार के लिए जागीर क्या करे

गुम हो गया शिकार निगाहों के सामने
टूटी हो जब कमान तो फिर तीर क्या करे