टपकते शो'लों की बरसात में नहाउँगा
अब आ गया हूँ तो इस शहर से न जाऊँगा
कशिश है घर में न बाहर की रौनक़ें बाक़ी
यूँही रहा तो कहाँ जा के मुस्कराउँगा
ये गीली गीली सी ख़ुशबू ये नर्म नर्म निगाह
तुम्हारे पास रहा मैं तो भीग जाऊँगा
बसा सको तो बसा लो मुझे ख़यालों में
कि इस दयार में दोबारा मैं न आऊँगा
क़दम समेट के चलना भी सीख जाओगे
तुम्हें मैं गाँव की पगडंडियाँ दिखाऊँगा
चला था ढूँडने मैं ज़िंदगी की बुनियादें
पता न था कि ख़ुद अपना पता न पाऊँगा
न हूँगा मैं तो मिरी दास्तान होगी 'नज़र'
ज़मीं पे धूप की सूरत मैं फैल जाऊँगा

ग़ज़ल
टपकते शो'लों की बरसात में नहाउँगा
बदनाम नज़र