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तन्हाई की क़ब्र से उठ कर मैं सड़कों पर खो जाता हूँ | शाही शायरी
tanhai ki qabr se uTh kar main saDkon par kho jata hun

ग़ज़ल

तन्हाई की क़ब्र से उठ कर मैं सड़कों पर खो जाता हूँ

यूसुफ़ आज़मी

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तन्हाई की क़ब्र से उठ कर मैं सड़कों पर खो जाता हूँ
चेहरों के गहरे सागर में मुर्दा आँखें फेंक आता हूँ

मैं कोई बरगद तो नहीं हूँ सदियों ठहरूँ इस धरती पर
धुँद में लिपटे ख़्वाबों का क़द लम्हा लम्हा नाप रहा हूँ

वो तो झूट की चादर ओढ़े फैला सागर फाँद चुका है
मैं ही सच की माला जपते इस धरती में डूब रहा हूँ

पानी की मौजों पे लिक्खी है लम्हों की बे-रूह कहानी
क्या पाया है क्या खोया है मैं सदियों से खोज रहा हूँ

'आज़मी' अपनी ये दुनिया हो जैसे कोई भूल-भुलय्याँ
धुँद में लिपटे ख़्वाबों ही से आँख-मिचोली खेल रहा हूँ