तन्हाई का रोग न पाल
घर से बाहर पावँ निकाल
जिन में हो ज़हरीला-पन
ऐसी बातें हँस कर टाल
शहर में वहशी आए हैं
चल जंगल में डेरा डाल
अंदर से हैं बिखरे बिखरे
और बाहर से सब ख़ुश-हाल
आँखें सब की फ़िक्र-ज़दा
कैसे बीतेगा ये साल
'तालिब' प्यास बुझे कैसे
एक नदी और सौ घड़ियाल

ग़ज़ल
तन्हाई का रोग न पाल
एजाज़ तालिब