EN اردو
तन्हाई का दुख गहरा था | शाही शायरी
tanhai ka dukh gahra tha

ग़ज़ल

तन्हाई का दुख गहरा था

नासिर काज़मी

;

तन्हाई का दुख गहरा था
मैं दरिया दरिया रोता था

एक ही लहर न संभली वर्ना
मैं तूफ़ानों से खेला था

तन्हाई का तन्हा साया
देर से मेरे साथ लगा था

छोड़ गए जब सारे साथी
तन्हाई ने साथ दिया था

सूख गई जब सुख की डाली
तन्हाई का फूल खिला था

तन्हाई में याद-ए-ख़ुदा थी
तन्हाई में ख़ौफ़-ए-ख़ुदा था

तन्हाई मेहराब-ब-इबादत
तन्हाई मिम्बर का दिया था

तन्हाई मिरा पा-ए-शिकस्ता
तन्हाई मिरा दस्त-ए-दुआ था

वो जन्नत मिरे दिल में छुपी थी
मैं जिसे बाहर ढूँड रहा था

तन्हाई मिरे दिल की जन्नत
मैं तन्हा हूँ मैं तन्हा था