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तन्हा उदास शब के सिवा कोई भी न था | शाही शायरी
tanha udas shab ke siwa koi bhi na tha

ग़ज़ल

तन्हा उदास शब के सिवा कोई भी न था

अबरार आज़मी

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तन्हा उदास शब के सिवा कोई भी न था
सन्नाटा आया झाँक के घर में चला गया

बे-कैफ़ियों की झील में बे-हिस से कुछ परिंद
बैठे थे थोड़ी देर मगर इस से क्या हुआ

चेहरों के मैले जिस्मों के जंगल थे हर जगह
उन में कहीं भी कोई मगर आदमी न था

वो अजनबी यही तो वो कहता था चीख़ कर
मेरा अधूरा ख़्वाब कहीं मुझ से खो गया

छन छन के आ रही है किधर से ये रौशनी
मेरी फ़सील-ए-दर्द की रिफ़अत को क्या हुआ