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तन्हा तिरा ख़ुदा नहीं ऐ आश्ना-ए-राज़ | शाही शायरी
tanha tera KHuda nahin ai aashna-e-raaz

ग़ज़ल

तन्हा तिरा ख़ुदा नहीं ऐ आश्ना-ए-राज़

मतीन नियाज़ी

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तन्हा तिरा ख़ुदा नहीं ऐ आश्ना-ए-राज़
तेरा भी कारसाज़ है मेरा भी कारसाज़

क्या कहिए रहगुज़ार-ए-मोहब्बत की दास्ताँ
जो दुश्मन-ए-सुकूँ है वो है मेरा चारासाज़

ऐ जान-ए-मुद्दआ मिरी जन्नत मिरी हयात
तेरा ख़याल तेरी तमन्ना मिरी नमाज़

नग़्मे भी हैं पसंद मुझे सोज़ भी अज़ीज़
सरमाया-ए-वफ़ा है मिरी ज़िंदगी का साज़

क्या दिन दिखाए देखिए इंसाँ की सर-कशी
सज्दों से पा रहा हूँ जबीनों को बे-नियाज़

पैग़ाम-ए-ज़िंदगी है मोहब्बत की हर अदा
यानी गुनाहगार-ए-मोहब्बत है पाक-बाज़

इंसानियत है मर्ग-ए-मुसलसल से हम-कनार
माँगो दुआ हयात रहे ग़म से सरफ़राज़

अब तक हैं याद मुझ को वो पैहम तजल्लियाँ
कितना नज़र-नवाज़ था हर मंज़र-ए-हिजाज़

मुझ को 'मतीन' नाज़ है अपने नसीब पर
मैं बंदा-ए-नसीर हूँ मैं ख़ादिम-ए-नियाज़