तन्हा तिरा ख़ुदा नहीं ऐ आश्ना-ए-राज़
तेरा भी कारसाज़ है मेरा भी कारसाज़
क्या कहिए रहगुज़ार-ए-मोहब्बत की दास्ताँ
जो दुश्मन-ए-सुकूँ है वो है मेरा चारासाज़
ऐ जान-ए-मुद्दआ मिरी जन्नत मिरी हयात
तेरा ख़याल तेरी तमन्ना मिरी नमाज़
नग़्मे भी हैं पसंद मुझे सोज़ भी अज़ीज़
सरमाया-ए-वफ़ा है मिरी ज़िंदगी का साज़
क्या दिन दिखाए देखिए इंसाँ की सर-कशी
सज्दों से पा रहा हूँ जबीनों को बे-नियाज़
पैग़ाम-ए-ज़िंदगी है मोहब्बत की हर अदा
यानी गुनाहगार-ए-मोहब्बत है पाक-बाज़
इंसानियत है मर्ग-ए-मुसलसल से हम-कनार
माँगो दुआ हयात रहे ग़म से सरफ़राज़
अब तक हैं याद मुझ को वो पैहम तजल्लियाँ
कितना नज़र-नवाज़ था हर मंज़र-ए-हिजाज़
मुझ को 'मतीन' नाज़ है अपने नसीब पर
मैं बंदा-ए-नसीर हूँ मैं ख़ादिम-ए-नियाज़
ग़ज़ल
तन्हा तिरा ख़ुदा नहीं ऐ आश्ना-ए-राज़
मतीन नियाज़ी