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तमकीं है और हुस्न-ए-गरेबाँ है और हम | शाही शायरी
tamkin hai aur husn-e-gareban hai aur hum

ग़ज़ल

तमकीं है और हुस्न-ए-गरेबाँ है और हम

दिल शाहजहाँपुरी

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तमकीं है और हुस्न-ए-गरेबाँ है और हम
ख़ुद्दारियों का ख़्वाब-ए-परेशाँ है और हम

साहिल से दूर ग़र्क़ हुई कश्ती-ए-उम्मीद
मौजों को छेड़ता हुआ तूफ़ाँ है और हम

किस ने हरीम-ए-नाज़ का पर्दा उलट दिया
नज़रों में एक शो'ला-ए-लर्ज़ां है और हम

तेरी तजल्लियाँ हैं जहाँ तक नज़र गई
असरार-ए-काएनात का इरफ़ाँ है और हम

बालीं से कौन महव-ए-तबस्सुम गुज़र गया
अब हर नज़र बहार-ए-बद-अमाँ है और हम

वारफ़्तगी-ए-इश्क़ ने पहुँचा दिया कहाँ
ख़ामोश इक फ़ज़ा-ए-बयाबाँ है और हम

ऐ 'दिल' ये सुन रहे हैं कि दुनिया बदल गई
अब तक उन्हीं हदों में बयाबाँ है और हम