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तमन्नाएँ ठिकाना चाहती हैं | शाही शायरी
tamannaen Thikana chahti hain

ग़ज़ल

तमन्नाएँ ठिकाना चाहती हैं

सोनरूपा विशाल

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तमन्नाएँ ठिकाना चाहती हैं
तिरे पहलू में आना चाहती हैं

ज़रा नज़दीक आ कर बैठिएगा
ये आँखें आब-ओ-दाना चाहती हैं

बदन के रंग रुख़्सत हो रहे हैं
मगर साँसें निभाना चाहती हैं

हमें पढ़ने की चाहत और कुछ है
किताबें कुछ पढ़ाना चाहती हैं

ये दिल विश्वास करना चाहता है
निगाहें सच बताना चाहती हैं