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तमाम उम्र अज़ाबों का सिलसिला तो रहा | शाही शायरी
tamam umr azabon ka silsila to raha

ग़ज़ल

तमाम उम्र अज़ाबों का सिलसिला तो रहा

जाँ निसार अख़्तर

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तमाम उम्र अज़ाबों का सिलसिला तो रहा
ये कम नहीं हमें जीने का हौसला तो रहा

गुज़र ही आए किसी तरह तेरे दीवाने
क़दम क़दम पे कोई सख़्त मरहला तो रहा

चलो न इश्क़ ही जीता न अक़्ल हार सकी
तमाम वक़्त मज़े का मुक़ाबला तो रहा

मैं तेरी ज़ात में गुम हो सका न तू मुझ में
बहुत क़रीब थे हम फिर भी फ़ासला तो रहा

ये और बात कि हर छेड़ ला-उबाली थी
तिरी नज़र का दिलों से मोआमला तो रहा