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तमाम शहर में तीरा-शबी का चर्चा था | शाही शायरी
tamam shahr mein tira-shabi ka charcha tha

ग़ज़ल

तमाम शहर में तीरा-शबी का चर्चा था

मंसूरा अहमद

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तमाम शहर में तीरा-शबी का चर्चा था
ये और बात कि सूरज उफ़ुक़ पे निकला था

अजीब वजह-ए-मुलाक़ात थी मिरी उस से
कि वो भी मेरी तरह शहर में अकेला था

मैं सब समझती रही और मुस्कुराती रही
मिरा मिज़ाज अज़ल से पयम्बरों सा था

मैं उस को खो के भी उस को पुकारती ही रही
कि सारा रब्त तो आवाज़ के सफ़र का था

मैं गुल-परस्त भी गुल से निबाह कर न सकी
शुऊर-ए-ज़ात का काँटा बहुत नुकीला था

सब एहतिसाब में गुम थे हुजूम-ए-याराँ में
ख़ुदा की तरह मिरा जुर्म-ए-इश्क़ तन्हा था

वो तेरे क़ुर्ब का लम्हा था या कोई इल्हाम
कि उस के लम्स से दिल में गुलाब खिलता था

मुझे भी मेरे ख़ुदा कुल्फ़तों का अज्र मिले
तुझे ज़मीं पे बड़े कर्ब से उतारा था