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तमाम रात छतों पर बरस गया पानी | शाही शायरी
tamam raat chhaton par baras gaya pani

ग़ज़ल

तमाम रात छतों पर बरस गया पानी

बीएस जैन जौहर

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तमाम रात छतों पर बरस गया पानी
सवेरा होते ही बस्ती में बस गया पानी

पिया की बाँहों में दुल्हन को कस गया पानी
अँधेरी रात में बिरहन को डस गया पानी

बड़ा ही नाज़ था अपनी ख़ुनुक-मिज़ाजी पर
ज़मीं के तपते तवे पर झुलस गया पानी

वो नापता रहा धरती के सब नशेब-ओ-फ़राज़
फ़रेब-ए-राहत-ए-माँदन में फँस गया पानी

नहाने आई थी गंदा है कह के लौट गई
किसी को छूने की ख़ातिर तरस गया पानी