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तमाम रात आँसुओं से ग़म उजालता रहा | शाही शायरी
tamam raat aansuon se gham ujalta raha

ग़ज़ल

तमाम रात आँसुओं से ग़म उजालता रहा

हफ़ीज़ मेरठी

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तमाम रात आँसुओं से ग़म उजालता रहा
मैं ग़म उजाल उजाल कर ख़ुशी में ढालता रहा

जवान मेरी हिम्मतें बुलंद मेरे हौसले
हिसार तोड़ता रहा कमंद डालता रहा

बहुत ही तल्ख़ तजरबा तुम्हारी बज़्म में हुआ
हर आदमी मिरी अना के बल निकालता रहा

हैं इल्तवा की गोद के पल्ले सब उस के मसअले
किसी को हल नहीं किया हमेशा टालता रहा

तिरे ख़िलाफ़ इस लिए मिरी ज़बाँ न खुल सकी
मैं अपनी ख़ामियों पे भी निगाह डालता रहा

ख़याल-ए-यार तेरी निगहदाशत इस तरह हुई
दिमाग़ थक के सो गया तो दिल सँभालता रहा

'हफ़ीज़' क्या सुनाऊँ अपनी ख़्वाहिशों की दास्ताँ
पिला पिला के दूध कितने साँप पालता रहा