तमाम फूल से चेहरों की सुर्ख़ियाँ उड़ जाएँ
अगर चमन से ये ख़ुश-रंग तितलियाँ उड़ जाएँ
वो बेवफ़ा भी है मग़रूर भी है पत्थर भी
उसे तराशने बैठूँ तो छेनियाँ उड़ जाएँ
ये हौसला है हमारा कि अब भी रौशन हैं
हवा की ज़द पे रहो तुम तो टोपियाँ उड़ जाएँ
भरा हुआ है वो बारूद मेरे सीने में
अगर कोई मुझे छू ले तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
ग़ज़ल
तमाम फूल से चेहरों की सुर्ख़ियाँ उड़ जाएँ
रईस अंसारी