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तमाम मोजज़े सारी शहादतें ले कर | शाही शायरी
tamam moajaze sari shahadaten le kar

ग़ज़ल

तमाम मोजज़े सारी शहादतें ले कर

साबिर वसीम

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तमाम मोजज़े सारी शहादतें ले कर
मैं आब ओ ख़ाक से गुज़रा अदावतें ले कर

ख़ुद अपने हर्फ़ के शोले में जल के लौटा हूँ
मैं इक सफ़र पे गया था हिकायतें ले कर

कशाँ-कशाँ लब-ए-साहिल उतर गई मुझ में
उदास रात समुंदर की वुसअतें ले कर

हद-ए-ज़मान-ओ-मकां से गुज़र रहा हूँ मैं
ख़ुद अपने होने न होने की हैरतें ले कर

अभी तो ज़ख़्म सिले थे कि आसमाँ से कोई
मिरी तरफ़ चला आया जराहतें ले कर

ज़मीं के लोगो सुनो हश्र अब न उट्ठेगा
गुज़र गया कोई सारी क़यामतें ले कर

अकेला शहर में फिरता हूँ सारा दिन 'साबिर'
मैं अपने बिछड़े हुओं की शबाहतें ले कर