तलब की राहों में सारे आलम नए नए से
शजर हजर लोग शहर मौसम नए नए से
चमक रहा था फ़लक पे सूरज नया नया सा
लुटा चुकी थी ख़ज़ाने शबनम नए नए से
हैं अब भी आँखों के दीदबानों में अपनी वो दिन
लगे दियार-ए-सहर को जब हम नए नए से
तमव्वुजों की रगों में शोरिश नई नई सी
लहू के झगड़े बदन में पैहम नए नए से
पुराने होते हुए सहीफ़े दरख़्त इंसाँ
ये चाँद सूरज सितारे हर दम नए नए से
कभी तो आएँगे शाख़-ए-दिल पर गुलाब ताज़ा
मिलेंगे 'असअद' हमें भी मौसम नए नए से
ग़ज़ल
तलब की राहों में सारे आलम नए नए से
असअ'द बदायुनी