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तलब की राहों में सारे आलम नए नए से | शाही शायरी
talab ki rahon mein sare aalam nae nae se

ग़ज़ल

तलब की राहों में सारे आलम नए नए से

असअ'द बदायुनी

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तलब की राहों में सारे आलम नए नए से
शजर हजर लोग शहर मौसम नए नए से

चमक रहा था फ़लक पे सूरज नया नया सा
लुटा चुकी थी ख़ज़ाने शबनम नए नए से

हैं अब भी आँखों के दीदबानों में अपनी वो दिन
लगे दियार-ए-सहर को जब हम नए नए से

तमव्वुजों की रगों में शोरिश नई नई सी
लहू के झगड़े बदन में पैहम नए नए से

पुराने होते हुए सहीफ़े दरख़्त इंसाँ
ये चाँद सूरज सितारे हर दम नए नए से

कभी तो आएँगे शाख़-ए-दिल पर गुलाब ताज़ा
मिलेंगे 'असअद' हमें भी मौसम नए नए से