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तलातुम है न जाँ-लेवा भँवर है | शाही शायरी
talatum hai na jaan-lewa bhanwar hai

ग़ज़ल

तलातुम है न जाँ-लेवा भँवर है

अरशद कमाल

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तलातुम है न जाँ-लेवा भँवर है
कि बहर-ए-मस्लहत अब मुस्तक़र है

दर-ए-सय्याद पर बरपा है मातम
क़फ़स में जब से ज़िक्र-ए-बाल-ओ-पर है

तकल्लुम का करिश्मा अब दिखा दो
तुम्हारी ख़ामुशी में शोर-ओ-शर है

करूँ क्या आरज़ू-ए-सरफ़राज़ी
कि जब नेज़े पे हर पल मेरा सर है

मिली मोहलत तो दिल में झाँक लूँगा
अभी तो ज़ेहन पर मेरी नज़र है

चढ़े दरिया में टूटी नाव खेना
कहानी ज़िंदगी की मुख़्तसर है

अगर सौदा रहे सर में तो 'अरशद'
हर इक दीवार के सीने में दर है