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तज्दीद-ए-रस्म-ओ-राह-ए-मुलाक़ात कीजिए | शाही शायरी
tajdid-e-rasm-o-rah-e-mulaqat kijiye

ग़ज़ल

तज्दीद-ए-रस्म-ओ-राह-ए-मुलाक़ात कीजिए

अनवर साबरी

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तज्दीद-ए-रस्म-ओ-राह-ए-मुलाक़ात कीजिए
मुझ से नज़र मिला के ज़रा बात कीजिए

दैर ओ हरम में रूह की तस्कीं न हो सकी
अब एहतिराम-ए-पीर-ए-ख़राबात कीजिए

आख़िर जनाब-ए-शैख़ हैं मेहमान-ए-मय-कदा
दो-चार जाम दे के मुदारात कीजिए

गुफ़्तार-ए-तल्ख़ शेवा-ए-वाइज़ है मय-कशो
शीरीं दहन की आप से क्या बात कीजिए

आया है कोई पुर्सिश-ए-अहवाल के लिए
पेश आँसुओं की आप भी सौग़ात कीजिए

'अनवर' ख़याल-ए-दोस्त में लिख कर कोई ग़ज़ल
तकमील-ए-तर्जुमानी-ए-जज़्बात कीजिए