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तज्दीद-ए-अहद कर किसी सीमीं बदन के साथ | शाही शायरी
tajdid-e-ahd kar kisi simin badan ke sath

ग़ज़ल

तज्दीद-ए-अहद कर किसी सीमीं बदन के साथ

तालिब बाग़पती

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तज्दीद-ए-अहद कर किसी सीमीं बदन के साथ
या'नी लुटा शबाब शराब-ए-कुहन के साथ

वाबस्ता-ए-बहार हो ख़ुद मिस्ल-रंग-ओ-बू
यूँ ज़िंदगी गुज़ार किसी गुल-ए-बदन के साथ

हाँ ऐ मुग़न्निया कोई मद्धम सा राग छेड़
या'नी मिला रबाब दिल-ए-पुर-मेहन के साथ

साक़ी पिला शराब ज़कात-ए-शबाब दे
हाँ फिर कोई मज़ाक़ दिल-ए-पुर-मेहन के साथ

दिल चाहता है फिर कोई बहका हुआ सा तीर
फिर खींच ले कमान उसी बाँकपन के साथ

ज़ाहिद ये तल्ख़ गुफ़्तुगू ये सुन हज़ार हैफ़
ज़ालिम गुज़ार दी किसी शीरीं-दहन के साथ

तुर्फ़ा सितम हैं चर्ख़ की ये आज़माइशें
वो भी शरीक-ए-ग़म हैं दिल-ए-पुर-मेहन के साथ

महरूम-ए-इल्तिफ़ात नहीं छेड़ है मुराद
दिल को भी लाग है निगह-ए-पुर-फ़तन के साथ

'तालिब' मुझी से पूछना 'तालिब' तू कौन है
हँस देना फिर किसी का अजब भोले-पन के साथ