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टहनियाँ फूलों को तरसेंगी यहाँ तेरे बा'द | शाही शायरी
Tahniyan phulon ko tarsengi yahan tere baad

ग़ज़ल

टहनियाँ फूलों को तरसेंगी यहाँ तेरे बा'द

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

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टहनियाँ फूलों को तरसेंगी यहाँ तेरे बा'द
वादी-ए-झंग से उट्ठेगा धुआँ तेरे बा'द

लाडले शीशमों की भाग-भरी शाख़ों से
कोंपलें फूटेंगी बन बन के फ़ुग़ाँ तेरे बा'द

धुँदली धुँदली नज़र आएँगी सुहानी रातें
हिचकियाँ लेगा ''तुरम्मों'' का समाँ तेरे बा'द

नाग बन जाएँगी पानी की शराबी लहरें
आग फैलाएगा सैलाब-ए-चिन्हाँ तेरे बा'द

कौन ''बेले'' में दिल-ए-ज़ार को बहलाएगा
कौन देगा मिरी आहों को अमाँ तेरे बा'द

''माहिया'' गाएँगी कूजें लब-ए-दरिया लेकिन
इन की संगीत में वो बात कहाँ तेरे बा'द