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तही सा जाम तो था गिर के बह गया होगा | शाही शायरी
tahi sa jam to tha gir ke bah gaya hoga

ग़ज़ल

तही सा जाम तो था गिर के बह गया होगा

अब्दुल हमीद अदम

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तही सा जाम तो था गिर के बह गया होगा
मिरा नसीब अज़ल में ही रह गया होगा

है अहरमन से न मालूम क्यूँ ख़फ़ा यज़्दाँ
ग़रीब कोई खरी बात कह गया होगा

हम और लोग हैं हम से बहुत ग़ुरूर न कर
कलीम था जो तिरा नाज़ सह गया होगा

क़रीब-ए-का'बा पहुँच कर 'अदम' को मत ढूँडो
वो हीला-जू कहीं रस्ते में रह गया होगा