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तहज्जुद में वो रंग-ओ-बू रात भर | शाही शायरी
tahajjud mein wo rang-o-bu raat bhar

ग़ज़ल

तहज्जुद में वो रंग-ओ-बू रात भर

नूर तक़ी नूर

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तहज्जुद में वो रंग-ओ-बू रात भर
ख़ुदा से रही गुफ़्तुगू रात भर

जो ख़्वाबों में लहराए फूलों के जाम
महकते रहे बे-सुबू रात भर

हुआ जो सर-ए-शाम दिल पाश पाश
किया तार-ए-ग़म से रफ़ू रात भर

वो तन्हाई का ख़ूबसूरत हुजूम
वो मेला सर-ए-आब-जू रात भर

चमकते रहे आँसुओं के चराग़
किया याद उन्हें बा-वज़ू रात भर

ये कमरे से कैसी महक आई थी
वहाँ तो न थे मैं न तू रात भर

तुम्हें 'नूर' ख़ुशबू ने ढूँडा बहुत
कहाँ तुम रहे ऐ गुरु रात भर