तग़ाफ़ुल-दोस्त हूँ मेरा दिमाग़-ए-अज्ज़ आली है
अगर पहलू-तही कीजे तो जा मेरी भी ख़ाली है
रहा आबाद आलम अहल-ए-हिम्मत के न होने से
भरे हैं जिस क़दर जाम-ओ-सुबू मय-ख़ाना ख़ाली है
ग़ज़ल
तग़ाफ़ुल-दोस्त हूँ मेरा दिमाग़-ए-अज्ज़ आली है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मिर्ज़ा ग़ालिब
तग़ाफ़ुल-दोस्त हूँ मेरा दिमाग़-ए-अज्ज़ आली है
अगर पहलू-तही कीजे तो जा मेरी भी ख़ाली है
रहा आबाद आलम अहल-ए-हिम्मत के न होने से
भरे हैं जिस क़दर जाम-ओ-सुबू मय-ख़ाना ख़ाली है