तड़प के लौट के आँसू बहा के देख लिया
लगी न दिल की तुझे दिल लगा के देख लिया
किसी ने दाद न दी कुछ फ़साना-ए-दिल की
उन्हें भी दर्द-ए-मोहब्बत सुना के देख लिया
किसे उमीद थी आओगे तुम दम-ए-आख़िर
बड़ा कमाल किया तुम ने आ के देख लिया
कहा था मैं ने कि दुश्वार दिल का लेना है
वो बोले दूर से मुझ को दिखा के देख लिया
ग़ज़ब किया कि चखा कर मय-ए-सुख़न का मज़ा
'शरफ़' से शख़्स को बे-ख़ुद बना के देख लिया

ग़ज़ल
तड़प के लौट के आँसू बहा के देख लिया
शरफ़ मुजद्दिदी