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ताज़ा आज़ार का अरमान कहाँ जाता है | शाही शायरी
taza aazar ka arman kahan jata hai

ग़ज़ल

ताज़ा आज़ार का अरमान कहाँ जाता है

मुबारक अज़ीमाबादी

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ताज़ा आज़ार का अरमान कहाँ जाता है
फिर सता ले तिरे क़ुर्बान कहाँ जाता है

किस पे दिल आया कहाँ आया बता ऐ नासेह
तू मिरी तरह परेशान कहाँ जाता है

ख़ानक़ाहों पे हुआ पीर-ए-मुग़ाँ का क़ब्ज़ा
आज मय-ख़ाने का सामान कहाँ जाता है

दिल सलामत नहीं आने का 'मुबारक' ब-ख़ुदा
अरे नादान कहा मान कहाँ जाता है