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ताबिश ये भला कौन सी रुत आई है जानी | शाही शायरी
tabish ye bhala kaun si rut aai hai jaani

ग़ज़ल

ताबिश ये भला कौन सी रुत आई है जानी

ऐन ताबिश

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ताबिश ये भला कौन सी रुत आई है जानी
सहरा में कोई रेग न दरिया में है पानी

ख़लवत-कदा-ए-दिल पे ज़बूँ-हाली-ए-बिसयार
है सूरत गंजीना-ए-अलफ़ाज़-ओ-मआ'नी

हर चंद हुई इस के एवज़ दिल की ख़राबी
क्या कहिए कि बढ़ता रहा शौक़-ए-हमा-दानी

मुझ से मिरी रोती हुई आँखें तो न छीनो
रहने दो मिरे पास मिरी कोई निशानी

दीवार-ओ-दर-ओ-बाम की वीरानी ने अक्सर
रो रो के कही मौसम-ए-रफ़्ता की कहानी