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ताबिंदा बहारों के नज़ारे नहीं देखे | शाही शायरी
tabinda bahaaron ke nazare nahin dekhe

ग़ज़ल

ताबिंदा बहारों के नज़ारे नहीं देखे

मरयम नाज़

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ताबिंदा बहारों के नज़ारे नहीं देखे
तू ने वो चमकते हुए तारे नहीं देखे

कुछ इस लिए भी नींद हमें आती है जल्दी
आँखों ने अभी ख़्वाब तुम्हारे नहीं देखे

ख़ुद हाथ मिलाया है समुंदर में भँवर से
कश्ती ने तलातुम में सहारे नहीं देखे

मुमकिन है किसी तौर कोई चारा भी होता
तू ने ही कभी ज़ख़्म हमारे नहीं देखे

क्या क्या न सितम मुझ पे किया रात ने आ कर
दिन कैसे मिरी जान गुज़ारे नहीं देखे

क्या देख रहे हो ये मोहब्बत के करम हैं
तुम ने कभी तक़दीर के मारे नहीं देखे