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ता हश्र रहे ये दाग़ दिल का | शाही शायरी
ta hashr rahe ye dagh dil ka

ग़ज़ल

ता हश्र रहे ये दाग़ दिल का

रंगीन सआदत यार ख़ाँ

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ता हश्र रहे ये दाग़ दिल का
या-रब न बुझे चराग़ दिल का

हम से भी तुनक-मिज़ाज है ये
पाते ही नहीं दिमाग़ दिल का

याँ आतिश-ए-इश्क़ से शब ओ रोज़
दहके है पड़ा अयाग़ दिल का

उस रश्क-ए-चमन की याद में है
शादाब हमेशा बाग़ दिल का

जीने का मज़ा उसी को है बस
जिस शख़्स को हो फ़राग़ दिल का

है बादा-ए-ग़म से तेरे दिन रात
लबरेज़ यहाँ अयाग़ दिल का

मालूम नहीं किसी को 'रंगीं'
दे कौन हमें सुराग़ दिल का