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ता-दश्त-ए-अदम आह-ए-रसा ले गई मुझ को | शाही शायरी
ta-dasht-e-adam aah-e-rasa le gai mujhko

ग़ज़ल

ता-दश्त-ए-अदम आह-ए-रसा ले गई मुझ को

लाला माधव राम जौहर

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ता-दश्त-ए-अदम आह-ए-रसा ले गई मुझ को
जब ख़ाक हुआ मैं तो हवा ले गई मुझ को

कोसों मय-ए-गुलगूँ की हवा ले गई मुझ को
ये लाल परी घर से उड़ा ले गई मुझ को

मुद्दत से न मिलती थी कहीं राह अदम की
उस शोख़ के कूचे में क़ज़ा ले गई मुझ को

था ज़ोफ़ में सौदा किसी सहरा-ए-जुनूँ का
वहशत मिरे घर आ के बुला ले गई मुझ को

'जौहर' तरफ़-ए-कूचा-ए-जानाँ जो गया मैं
क्या जाने किधर की ये हवा ले गई मुझ को