ता-दश्त-ए-अदम आह-ए-रसा ले गई मुझ को
जब ख़ाक हुआ मैं तो हवा ले गई मुझ को
कोसों मय-ए-गुलगूँ की हवा ले गई मुझ को
ये लाल परी घर से उड़ा ले गई मुझ को
मुद्दत से न मिलती थी कहीं राह अदम की
उस शोख़ के कूचे में क़ज़ा ले गई मुझ को
था ज़ोफ़ में सौदा किसी सहरा-ए-जुनूँ का
वहशत मिरे घर आ के बुला ले गई मुझ को
'जौहर' तरफ़-ए-कूचा-ए-जानाँ जो गया मैं
क्या जाने किधर की ये हवा ले गई मुझ को
ग़ज़ल
ता-दश्त-ए-अदम आह-ए-रसा ले गई मुझ को
लाला माधव राम जौहर