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सूरज उगा तो फूल सा महका है कौन कौन | शाही शायरी
suraj uga to phul sa mahka hai kaun kaun

ग़ज़ल

सूरज उगा तो फूल सा महका है कौन कौन

पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"

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सूरज उगा तो फूल सा महका है कौन कौन
अब देखना यही है कि जागा है कौन कौन

बाहर से अपने रूप को पहचानते हैं सब
भीतर से अपने आप को जाना है कौन कौन

लेने के साँस यूँ तो गुनहगार हैं सभी
ये देखिए कि शहर में ज़िंदा है कौन कौन

अपना वजूद यूँ तो समेटे हुए हैं हम
देखो इन आँधियों में बिखरता है कौन कौन

दा'वे तो सब के सुन लिए 'आज़र' मगर ये देख
तारे गगन से तोड़ के लाता है कौन कौन