सूरज उगा तो फूल सा महका है कौन कौन
अब देखना यही है कि जागा है कौन कौन
बाहर से अपने रूप को पहचानते हैं सब
भीतर से अपने आप को जाना है कौन कौन
लेने के साँस यूँ तो गुनहगार हैं सभी
ये देखिए कि शहर में ज़िंदा है कौन कौन
अपना वजूद यूँ तो समेटे हुए हैं हम
देखो इन आँधियों में बिखरता है कौन कौन
दा'वे तो सब के सुन लिए 'आज़र' मगर ये देख
तारे गगन से तोड़ के लाता है कौन कौन
ग़ज़ल
सूरज उगा तो फूल सा महका है कौन कौन
पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"