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सूरज सुर्ख़ दिशा में उतरा | शाही शायरी
suraj surKH disha mein utra

ग़ज़ल

सूरज सुर्ख़ दिशा में उतरा

नासिर शहज़ाद

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सूरज सुर्ख़ दिशा में उतरा
दिन डूबा दरिया में उतरा

होटल सब्ज़ा लॉन लब-ए-जू
घिरता अब्र घटा में उतरा

अट कर गर्द-ए-मआ'श से उभरे
फट कर दर्द दुआ में उतरा

शहर-पनाह की गलियाँ जागीं
चाँद जो महल-सरा में उतरा

सोए ओढ़ के मक़्तल को हम
दश्त-ए-बला सहरा में उतरा

बाम पे शाम हुई गोरी को
अंग का रंग अदा में उतरा

शाख़ झुकी चेहरे के आगे
टूट के फूल क़बा में उतरा

मरे कभी बे-नाम ही हम तुम
क़िस्सा कभी कथा में उतरा

धूप ही धूप थी इस के मुख पर
रूप ही रूप हवा में उतरा