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सूरज की तपती धूप ने मारा है इन दिनों | शाही शायरी
suraj ki tapti dhup ne mara hai in dinon

ग़ज़ल

सूरज की तपती धूप ने मारा है इन दिनों

सीमा शर्मा मेरठी

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सूरज की तपती धूप ने मारा है इन दिनों
पेड़ों की छाँव का ही सहारा है इन दिनों

हम को भी दिल के दर्द ने मारा है इन दिनों
दर्द-ए-जिगर ग़ज़ल में उतारा है इन दिनों

एहसास बर्फ़ बर्फ़ हैं दिल की ज़मीन पर
यादों की धूप का ही सहारा है इन दिनों

सूखे बदन की ख़ाक पे ग़म की फुवार थी
ये ही सबब है जिस्म में गारा है इन दिनों

ये अश्क अब तो प्यास बुझाने लगे मिरी
ये आबशार अपना सहारा है इन दिनों

ग़म के थपेड़े बीच समुंदर में ले गए
ख़ुशियों का मुझ से दूर किनारा है इन दिनों

'सीमा' की धड़कनें भी तुम्हारी कनीज़ हैं
दिल पर हमारे राज तुम्हारा है इन दिनों