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सूरज की किरन का शोबदा है | शाही शायरी
suraj ki kiran ka shoabada hai

ग़ज़ल

सूरज की किरन का शोबदा है

क़य्यूम नज़र

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सूरज की किरन का शोबदा है
रंग-ए-रुख़-ए-ज़र्द उड़ गया है

नक़्श-ए-कफ़-ए-पा ने गुल खिलाए
वीराँ कहाँ अब ये रास्ता है

जाग उट्ठी हैं ज़िंदगी की राहें
शायद कोई चाँद को गया है

शोलों से हुआ था बाग़ ख़ाली
फिर सीना-ए-गुल भड़क उठा है

पत्ते पत्ते का रंग बदला
बदली बदली हुई फ़ज़ा है

पहले तो न यूँ कभी हुआ था
तू भी मुझे देख कर हँसा है

बेगानगी ने ये राज़ खोला
तू मेरा अज़ल से आश्ना है

शबनम सर-ए-नोक-ए-ख़ार यानी
लब पे मिरे हर्फ़-ए-मुद्दआ है

हर दर्द नहीं दवा का मुहताज
यूँ भी तो इलाज-ए-ग़म हुआ है

तेरा ही रहेगा बोल-बाला
दिल मेरा अबस धड़क रहा है