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सूने सूने उजड़े उजड़े से घरों में ले चलो | शाही शायरी
sune sune ujDe ujDe se gharon mein le chalo

ग़ज़ल

सूने सूने उजड़े उजड़े से घरों में ले चलो

हयात लखनवी

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सूने सूने उजड़े उजड़े से घरों में ले चलो
मुझ को मेरे रोज़-ओ-शब के मंज़रों में ले चलो

कुछ तो अपने पास भी हो ज़िंदगी के वास्ते
कोई तो सौदा-ए-ख़ाम अपने सरों में ले चलो

ना-रसाई का तसव्वुर क्यूँ उड़ानों में रहे
मंज़िलों की दूरियाँ अपने परों में ले चलो

शहर की रंगीनियों में हैं कहाँ गुंजाइशें
ज़ात की वीरानियाँ सब मक़बरों में ले चलो

फिर तुम्हारे माबदों को मिल गए माबूद कुछ
फिर हमारे जिस्म मुर्दा पत्थरों में ले चलो

कुछ न कुछ बन जाएगा नक़्द-ओ-नज़र के बाद वो
मसअला कुछ भी न हो दानिशवरों में ले चलो

आज पहली बार मुझ से क्यूँ वो हारा है 'हयात'
आज मुझ को शहर के बाज़ीगरों में ले चलो