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सुरूर से अटे हुए ऐ मौसम-ए-विसाल रुक | शाही शायरी
surur se aTe hue ai mausam-e-visal ruk

ग़ज़ल

सुरूर से अटे हुए ऐ मौसम-ए-विसाल रुक

नदीम सिरसीवी

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सुरूर से अटे हुए ऐ मौसम-ए-विसाल रुक
मिले दरीदा-कल्ब को सुकून-इंदिमाल रुक

ऐ हैरत-ए-गुलाब-रुख़ तू इतना ला-जवाब है
कि कह उठे सवाल से हमारे लब सवाल रुक

तुझे गिला है अब वो लज़्ज़तें रहीं न क़ुर्बतें
मैं डालता हूँ रक़्स-ए-इश्क़ में अभी धमाल रुक

न रास आएगा कोई न दिल को भाएगा कोई
हमारे बिन डसेगा तुझ को उम्र-भर मलाल रुक

पड़ेगा रन अज़िय्यतों का सम्त-ए-शहर-ए-हिज्र रोज़
उधर न जा ठहर ज़रा तू देख मेरा हाल रुक

मैं तेरे हस्ब-ए-इद्दआ' नहीं हूँ वो जो था कभी
वो था भी लौट आएगा ऐ मेरे हम-ख़याल रुक

ग़ज़ल-तराज़ियाँ मिरी निगाह-ए-नाज़ से तिरी
ये कर रही हैं इल्तिजा न जा मिरे ग़ज़ाल रुक

हवास खो चुके हैं सब हुआ 'नदीम' जाँ-बलब
तू अब न मेरे सामने आ हासिल-ए-जमाल रुक