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सुर्ख़-रू होने के क़ाबिल क्या हिना थी मैं न था | शाही शायरी
surKH-ru hone ke qabil kya hina thi main na tha

ग़ज़ल

सुर्ख़-रू होने के क़ाबिल क्या हिना थी मैं न था

नवाब शाहजहाँ बेगम शाहजहाँ

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सुर्ख़-रू होने के क़ाबिल क्या हिना थी मैं न था
आप के क़दमों के नीचे उस को जा थी मैं न था

देखते क्या हो उधर गर ज़ुल्फ़ बरहम हो गई
ये सरासर हरकत-ए-बाद-ए-सबा थी मैं न था

जल गए अग़्यार सब महफ़िल में आने से मिरे
ऐ परी ये गर्मी-ए-आह-ए-रसा थी मैं न था

क्यूँ न उस हसरत से मेरा शीशा-ए-दिल चूर हो
बाग़ था साक़ी था सब्ज़ा था हवा थी मैं न था