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सुर्ख़ लावे की तरह तप के निखरना सीखो | शाही शायरी
surKH lawe ki tarah tap ke nikharna sikho

ग़ज़ल

सुर्ख़ लावे की तरह तप के निखरना सीखो

याक़ूब राही

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सुर्ख़ लावे की तरह तप के निखरना सीखो
सूखी धरती की दरारों से उभरना सीखो

सीना-ए-दश्त में रह रह के उतरते जाओ
या फिर आँधी की तरह खुल के गुज़रना सीखो

कोहसारों पे चढ़ो अब्र-ए-रवाँ की सूरत
आबशारों की तरह गिर के बिखरना सीखो

मक़्तल-ए-शहर में जब हर्फ़-ए-वफ़ा खो जाए
तुम किसी चीख़ की मानिंद उभरना सीखो