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सुपुर्दगी का वलवला जमाल में नहीं मिला | शाही शायरी
supurdagi ka walwala jamal mein nahin mila

ग़ज़ल

सुपुर्दगी का वलवला जमाल में नहीं मिला

कामरान नदीम

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सुपुर्दगी का वलवला जमाल में नहीं मिला
मुझे फुसून-ए-बे-खु़दी विसाल में नहीं मिला

जो आइने से किर्चियों के दरमियाँ का था सफ़र
शिकस्त-ए-ज़ात की किसी मिसाल में नहीं मिला

अलम-नसीब शाम में है मेहर-ए-जाँ बुझा बुझा
नशात-ए-रंज भी मुझे मआल में नहीं मिला

हज़ार यासमीन मुश्क-बू हूँ तेरे क़ुर्ब में
चमन का अक्स तेरे ख़द्द-ओ-ख़ाल में नहीं मिला

वो सर-बुरीदा चाँद भी ग़ुरूब हो गया मगर
सितारा-ए-सहर शब-ए-ज़वाल में नहीं मिला

'नदीम' हर क़दम पे दर्द-ए-बे-अमाँ का दर खुला
सुकून इस जहान-ए-बे-मिसाल में नहीं मिला